सोमवार, 10 नवंबर 2008
गुरुवार, 6 नवंबर 2008
शनिवार, 1 नवंबर 2008
शनिवार, 25 अक्टूबर 2008
मुझसे बेहतर ...
राट्रीय सहारा के 'खुला पन्ना ' के मुतफर्रिक कॉलम के सिलसिले की आखरी पेशकश थी __'मुझसे बेहतर ... ' जब उस सिलसिले के आगाज की सोच आई है तो तारीख है__ २५ अक्तूबर २००८ __तकरीबन १४ साल आगे बढ़ गया समय का कारवां ! __१४ साल__ राम का बनवास कितने साल का था ! ! __आप सोचिये __अपने टिल्लन __और उदयन जी के __ टिल्लन जी को __आगे के सफर की इजाजत दीजिये__
मुझसे बेहतर कहने वाले ! _टिल्लन रिछारिया
खुला पन्ना ' के इस तिकलमा स्पेस को कोई नाम देने का इरादा नहीं ,ना ही इसे किसी विधागत अनुशासन मई बाँधने का सोच ...आजाद ख्याल और रवनी के परों पर ...कभी बे-पर की कभी कही -अनकही ,कभी लंतरानी ,कभी इधर की ...कभी उधर की ,कभी दीन-दुनिया की...तो कभी तेरी -मेरी-उसकी ले उड़ने की बात_सिलसिला जारी है_इस अहसास के साथ कि न जमाने की तहजीब है और कहने-सुनने का सलीका ...न कोई हुनर और न कोई अलंबरदारी__फकत एक जज़्बा है _जो सुना-गुना ...आप सब से कहने का।
कहने, सुनने और गाने का अपना सिलसिला है _जो कभी-कभी कागज पर भी छलक आता है ...न भी छलके...तो भी _दहके अलाव के इर्द-गिर्द ,बड़े-बूढों की जुबानों मैं ,संगी-यारों के जमावों मैं,अन्तरंग की बांहों मैं गली-कुचों -गलियारों मैं ...ठिठोली -ठहाकों में गुलजार है__जीवन की एक अनन्य धरा है यह ...जिसमें दुबकी लगाये बिना आपकी गति उसी दार्शनिक जैसी है_जिसके तमाम ज्ञान के सामने... अनपद नाविक के तूफान आने और नाव के डूबने के खतरे की सुचना से दार्शनिक महोदय का सारा ज्ञान उड़ जाता है__हुजुर तैरना आता है आपको __ज्ञान-विज्ञानंके तमाम हिमालयों की लाँघ भी जीवन के कई मोर्चों पर आपको बेबस बना देती है _ जब आप निरे किताबी होते हैं।
हलाँकि यह कालम ...या और कोई भी छापा ...कटाई ऐसा ताबीज नहीं ...जिसे धारण कर आप संसार-सागर पार कर जाएँ _कहीं-न-कहीं तो हर किसी को टूटना है ...डूबना है._कागज़ पर अब तक उगाई गई किसिम-किसिम की फसलों का ...इतना ही हासिल है की ...क्या था वः ज़माना ...जो अपने गुजर गया ...क्या-क्या लोग गा-बजा गये __किनकी हड्डियां वाकई बज्र बनीं ...और कौन-कौन प्लेट मैं ही लिए घूमते रह गए।
हर धड़कन कागज के होंठो नहीं बोल पाती ...लेकिन अबोली भी नहीं रहती ...सफर-सरांय ...गूंजती रहती है.कानों -कान तमाम सारा आज भी हमारे-आपके आसपास धड़क रहा है.हमारे आपके साथ अगले पड़ाव तक भी जायेगा ...कागज से भी आगे की यात्रा है इसकी ...न भी दर्ज करें हम-आप ...पर ये हम सब की खबर ले ...हम सब की खबर बखूबी देगी ._शायद वैसे ही बिजुका लगें हम-आप भी जैसे हमारे दादे-परदादे किस्सों मैं .__पीढियों के अंतराल की एक छवि देखिये __स्वर्ग से पति-पत्नी की तीन पीढियां नजारा देख रहीं हैं...बदलते जमाने का _ देखो तो...कितना कुछ बदल गया...याद है ...आपने बरसों बाद हमारा चेहरा मुट्ठी भर जुगनुओं की चमक मैं देखा था ._दूसरी पीढी _बिजली की चमक मैं...मेंह बरसती रात थी .तीसरी पीढी _उस दिन.... !
तुमने कही, हमने सूनी ...सूनी सुनाई गुनी ...कहीं और कही_और कही बात चलती रही...बातों -बातों मैं _कहीं हकीकत बनी तो कहीं फ़साना ...कहीं फलसफा ...तो कहीं तराना ._दास्ताँ-डर-दास्ताँ जारी सफर मैं ...कौन कहाँ सो गया...सुनाते-सुनाते...कौन सो गया सुनते-सुनते इसका हिसाब-किताब बहुत मुश्किल है._कम-से-कम कागज पर तो और मुश्किल _जो जात-कुजात बरतता है,अर्थ ,अलंकार,अभिजात्य ...संस्कार निरखता है,उसका ओचित्य ...तर्क...व्यंजना और सार-तत्व परखता है_तमाम कसौटियों के बाद कागज़ बनता है__किसी कीजुबान !__वह भी तमाम बंदिशों ...वर्जनाओं ...और आग्रहों के साथ !!__कागज पर दर्ज कबीरी का ये ही तो रोना है__इकतारे की रुनझुन विलग कबीरा को गाना फकत __शब्दों को नचाना है__तभी तो छापे की थाप से अलग दुनिया अपनी ही मस्ती मैं नाचती है...दीवानी मीरा की तरह !
एक मुत्फारिक दुनिया है ...जमाने-से-जमाने के बीच पुल __तमाम सफर मैं हैं अपनी-अपनी यादों की पोटली लादे __जमाने भर का लोहा-लंगड़ ,अगड़म -बगड़म ,पोथी-पत्तर ,कथा-कबाड़,थ्योरी-थीसिस ,बहता-बहता संसार __कभी किसी कोने से ...तो कभी किसी कोने से ...शिनाख्त पाते हैं __यह तिकलमा...जो सुनेगा...गुनेगा...कहेगा ...उन सबको हाजिर...नाजिर मानकर ...जो कहते-कहते सो गए...जो सुनाने को बैठे हैं ...बोली-अबोली दस्तें ...! हम सब सफर मैं हैं __कल और आयेंगे मुझसे कहने वाले !!!
'मुतफर्रिक ' कालम के तहत छपने वाले टुकडे प्रिंट के रूप में आप __http://tillanr.blogspot.com/पढ़ सकतें हैं !
मुझसे बेहतर कहने वाले ! _टिल्लन रिछारिया
खुला पन्ना ' के इस तिकलमा स्पेस को कोई नाम देने का इरादा नहीं ,ना ही इसे किसी विधागत अनुशासन मई बाँधने का सोच ...आजाद ख्याल और रवनी के परों पर ...कभी बे-पर की कभी कही -अनकही ,कभी लंतरानी ,कभी इधर की ...कभी उधर की ,कभी दीन-दुनिया की...तो कभी तेरी -मेरी-उसकी ले उड़ने की बात_सिलसिला जारी है_इस अहसास के साथ कि न जमाने की तहजीब है और कहने-सुनने का सलीका ...न कोई हुनर और न कोई अलंबरदारी__फकत एक जज़्बा है _जो सुना-गुना ...आप सब से कहने का।
कहने, सुनने और गाने का अपना सिलसिला है _जो कभी-कभी कागज पर भी छलक आता है ...न भी छलके...तो भी _दहके अलाव के इर्द-गिर्द ,बड़े-बूढों की जुबानों मैं ,संगी-यारों के जमावों मैं,अन्तरंग की बांहों मैं गली-कुचों -गलियारों मैं ...ठिठोली -ठहाकों में गुलजार है__जीवन की एक अनन्य धरा है यह ...जिसमें दुबकी लगाये बिना आपकी गति उसी दार्शनिक जैसी है_जिसके तमाम ज्ञान के सामने... अनपद नाविक के तूफान आने और नाव के डूबने के खतरे की सुचना से दार्शनिक महोदय का सारा ज्ञान उड़ जाता है__हुजुर तैरना आता है आपको __ज्ञान-विज्ञानंके तमाम हिमालयों की लाँघ भी जीवन के कई मोर्चों पर आपको बेबस बना देती है _ जब आप निरे किताबी होते हैं।
हलाँकि यह कालम ...या और कोई भी छापा ...कटाई ऐसा ताबीज नहीं ...जिसे धारण कर आप संसार-सागर पार कर जाएँ _कहीं-न-कहीं तो हर किसी को टूटना है ...डूबना है._कागज़ पर अब तक उगाई गई किसिम-किसिम की फसलों का ...इतना ही हासिल है की ...क्या था वः ज़माना ...जो अपने गुजर गया ...क्या-क्या लोग गा-बजा गये __किनकी हड्डियां वाकई बज्र बनीं ...और कौन-कौन प्लेट मैं ही लिए घूमते रह गए।
हर धड़कन कागज के होंठो नहीं बोल पाती ...लेकिन अबोली भी नहीं रहती ...सफर-सरांय ...गूंजती रहती है.कानों -कान तमाम सारा आज भी हमारे-आपके आसपास धड़क रहा है.हमारे आपके साथ अगले पड़ाव तक भी जायेगा ...कागज से भी आगे की यात्रा है इसकी ...न भी दर्ज करें हम-आप ...पर ये हम सब की खबर ले ...हम सब की खबर बखूबी देगी ._शायद वैसे ही बिजुका लगें हम-आप भी जैसे हमारे दादे-परदादे किस्सों मैं .__पीढियों के अंतराल की एक छवि देखिये __स्वर्ग से पति-पत्नी की तीन पीढियां नजारा देख रहीं हैं...बदलते जमाने का _ देखो तो...कितना कुछ बदल गया...याद है ...आपने बरसों बाद हमारा चेहरा मुट्ठी भर जुगनुओं की चमक मैं देखा था ._दूसरी पीढी _बिजली की चमक मैं...मेंह बरसती रात थी .तीसरी पीढी _उस दिन.... !
तुमने कही, हमने सूनी ...सूनी सुनाई गुनी ...कहीं और कही_और कही बात चलती रही...बातों -बातों मैं _कहीं हकीकत बनी तो कहीं फ़साना ...कहीं फलसफा ...तो कहीं तराना ._दास्ताँ-डर-दास्ताँ जारी सफर मैं ...कौन कहाँ सो गया...सुनाते-सुनाते...कौन सो गया सुनते-सुनते इसका हिसाब-किताब बहुत मुश्किल है._कम-से-कम कागज पर तो और मुश्किल _जो जात-कुजात बरतता है,अर्थ ,अलंकार,अभिजात्य ...संस्कार निरखता है,उसका ओचित्य ...तर्क...व्यंजना और सार-तत्व परखता है_तमाम कसौटियों के बाद कागज़ बनता है__किसी कीजुबान !__वह भी तमाम बंदिशों ...वर्जनाओं ...और आग्रहों के साथ !!__कागज पर दर्ज कबीरी का ये ही तो रोना है__इकतारे की रुनझुन विलग कबीरा को गाना फकत __शब्दों को नचाना है__तभी तो छापे की थाप से अलग दुनिया अपनी ही मस्ती मैं नाचती है...दीवानी मीरा की तरह !
एक मुत्फारिक दुनिया है ...जमाने-से-जमाने के बीच पुल __तमाम सफर मैं हैं अपनी-अपनी यादों की पोटली लादे __जमाने भर का लोहा-लंगड़ ,अगड़म -बगड़म ,पोथी-पत्तर ,कथा-कबाड़,थ्योरी-थीसिस ,बहता-बहता संसार __कभी किसी कोने से ...तो कभी किसी कोने से ...शिनाख्त पाते हैं __यह तिकलमा...जो सुनेगा...गुनेगा...कहेगा ...उन सबको हाजिर...नाजिर मानकर ...जो कहते-कहते सो गए...जो सुनाने को बैठे हैं ...बोली-अबोली दस्तें ...! हम सब सफर मैं हैं __कल और आयेंगे मुझसे कहने वाले !!!
'मुतफर्रिक ' कालम के तहत छपने वाले टुकडे प्रिंट के रूप में आप __http://tillanr.blogspot.com/पढ़ सकतें हैं !
बुधवार, 22 अक्टूबर 2008
मुझसे बेहतर कहने वाले ...
बहुत आए ...मुझसे बेहतर कहने वाले ...और अपनी-अपनी कह कर चले जाने वाले ...कुछ कागज के आरपार होते हुए टेलीवीजन की कगार चढ़ गये ...तो कुछ समय की धार बह ...उस पार ....चले गये ...जो चले गए __कमलेश्वर ,उदयन शर्मा ,सुरेन्द्र प्रताप सिंह _को सादर प्रणाम __धर्मवीर भारती ,डॉ महावीर अधिकारी और शरद जोशी __को राम-राम ....जो और नाम और अनाम जहाँ-जहाँ विराजमान हैं __उन्हें ...वहां -वहां तक साष्टांग ... प्रणाम __
मुझसे बेहतर कहने वाले __शीर्षक है उस सीरीज की आखिरी पेशकश का ...जिसे उस दौर (१९९३-९४) के 'राष्ट्रीय सहारा ' के ../खुला-पन्ना / में...
हरदिल अजीज _उदयन शर्मा _की ख्वाहिश की तामीर के लिए अंजाम दिया गया था._इन लंतरानियों को समोने के लिए नाम दिया गया__मुतफर्रिक __और इस नाचीज ...टिल्लन ...को ...जी ...से नवाजा गया ._वाह ! जनाब अच्छा खेल खेला !! ...आइये फ़िर खेलते हैं _सिलसिला वहीं से पकड़ते हैं ,जहां से छोड़ा गया था। आगे बिढिए ,अगला मजमून पढिये >>>
मुझसे बेहतर कहने वाले __शीर्षक है उस सीरीज की आखिरी पेशकश का ...जिसे उस दौर (१९९३-९४) के 'राष्ट्रीय सहारा ' के ../खुला-पन्ना / में...
हरदिल अजीज _उदयन शर्मा _की ख्वाहिश की तामीर के लिए अंजाम दिया गया था._इन लंतरानियों को समोने के लिए नाम दिया गया__मुतफर्रिक __और इस नाचीज ...टिल्लन ...को ...जी ...से नवाजा गया ._वाह ! जनाब अच्छा खेल खेला !! ...आइये फ़िर खेलते हैं _सिलसिला वहीं से पकड़ते हैं ,जहां से छोड़ा गया था। आगे बिढिए ,अगला मजमून पढिये >>>
चौकस रहें ...
न घबराएं न अपने आसपास घबराहट पैदा करें _माहौल में और दिमाग में नरमी बनाएँ रखें ...आप के लिए यह बहुत जरुरी है __क्यूंकि आप अपनी हडबडाहट का प्रदर्शन कर , अपने आपको भविष्य - दृष्टा जाहिर करने के फेर अपना और अपने आसपास का खासा नुकसान करेंगे __बेहतर है चौकस रहें .
शनिवार, 18 अक्टूबर 2008
दिल्ली के नाम
इन दिनों दिल्ली की धड़कनें गर्म हैं ...हवाओं में शरारत और फिजाओं मे खनक कुछ इस कदर बढ़ रही है कि ..हर समझदार शरीफ फिलहाल सहमा -सहमा है ._शेयर फेयर रहे नहीं , टिकिट मिलेगा कि नहीं , कल क्या होगा .....संशय और ऊहापोह ...कल की दिल्ली किसी होगी ...सब खैरियत रहे __एक दुआ दिल्ली के नाम ।
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