बुधवार, 22 अक्टूबर 2008

मुझसे बेहतर कहने वाले ...

बहुत आए ...मुझसे बेहतर कहने वाले ...और अपनी-अपनी कह कर चले जाने वाले ...कुछ कागज के आरपार होते हुए टेलीवीजन की कगार चढ़ गये ...तो कुछ समय की धार बह ...उस पार ....चले गये ...जो चले गए __कमलेश्वर ,उदयन शर्मा ,सुरेन्द्र प्रताप सिंह _को सादर प्रणाम __धर्मवीर भारती ,डॉ महावीर अधिकारी और शरद जोशी __को राम-राम ....जो और नाम और अनाम जहाँ-जहाँ विराजमान हैं __उन्हें ...वहां -वहां तक साष्टांग ... प्रणाम __
मुझसे बेहतर कहने वाले __शीर्षक है उस सीरीज की आखिरी पेशकश का ...जिसे उस दौर (१९९३-९४) के 'राष्ट्रीय सहारा ' के ../खुला-पन्ना / में...
हरदिल अजीज _उदयन शर्मा _की ख्वाहिश की तामीर के लिए अंजाम दिया गया था._इन लंतरानियों को समोने के लिए नाम दिया गया__मुतफर्रिक __और इस नाचीज ...टिल्लन ...को ...जी ...से नवाजा गया ._वाह ! जनाब अच्छा खेल खेला !! ...आइये फ़िर खेलते हैं _सिलसिला वहीं से पकड़ते हैं ,जहां से छोड़ा गया था। आगे बिढिए ,अगला मजमून पढिये >>>

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