शनिवार, 25 अक्टूबर 2008

मुझसे बेहतर ...

राट्रीय सहारा के 'खुला पन्ना ' के मुतफर्रिक कॉलम के सिलसिले की आखरी पेशकश थी __'मुझसे बेहतर ... ' जब उस सिलसिले के आगाज की सोच आई है तो तारीख है__ २५ अक्तूबर २००८ __तकरीबन १४ साल आगे बढ़ गया समय का कारवां ! __१४ साल__ राम का बनवास कितने साल का था ! ! __आप सोचिये __अपने टिल्लन __और उदयन जी के __ टिल्लन जी को __आगे के सफर की इजाजत दीजिये__
मुझसे बेहतर कहने वाले ! _टिल्लन रिछारिया
खुला पन्ना ' के इस तिकलमा स्पेस को कोई नाम देने का इरादा नहीं ,ना ही इसे किसी विधागत अनुशासन मई बाँधने का सोच ...आजाद ख्याल और रवनी के परों पर ...कभी बे-पर की कभी कही -अनकही ,कभी लंतरानी ,कभी इधर की ...कभी उधर की ,कभी दीन-दुनिया की...तो कभी तेरी -मेरी-उसकी ले उड़ने की बात_सिलसिला जारी है_इस अहसास के साथ कि न जमाने की तहजीब है और कहने-सुनने का सलीका ...न कोई हुनर और न कोई अलंबरदारी__फकत एक जज़्बा है _जो सुना-गुना ...आप सब से कहने का।

कहने, सुनने और गाने का अपना सिलसिला है _जो कभी-कभी कागज पर भी छलक आता है ...न भी छलके...तो भी _दहके अलाव के इर्द-गिर्द ,बड़े-बूढों की जुबानों मैं ,संगी-यारों के जमावों मैं,अन्तरंग की बांहों मैं गली-कुचों -गलियारों मैं ...ठिठोली -ठहाकों में गुलजार है__जीवन की एक अनन्य धरा है यह ...जिसमें दुबकी लगाये बिना आपकी गति उसी दार्शनिक जैसी है_जिसके तमाम ज्ञान के सामने... अनपद नाविक के तूफान आने और नाव के डूबने के खतरे की सुचना से दार्शनिक महोदय का सारा ज्ञान उड़ जाता है__हुजुर तैरना आता है आपको __ज्ञान-विज्ञानंके तमाम हिमालयों की लाँघ भी जीवन के कई मोर्चों पर आपको बेबस बना देती है _ जब आप निरे किताबी होते हैं।

हलाँकि यह कालम ...या और कोई भी छापा ...कटाई ऐसा ताबीज नहीं ...जिसे धारण कर आप संसार-सागर पार कर जाएँ _कहीं-न-कहीं तो हर किसी को टूटना है ...डूबना है._कागज़ पर अब तक उगाई गई किसिम-किसिम की फसलों का ...इतना ही हासिल है की ...क्या था वः ज़माना ...जो अपने गुजर गया ...क्या-क्या लोग गा-बजा गये __किनकी हड्डियां वाकई बज्र बनीं ...और कौन-कौन प्लेट मैं ही लिए घूमते रह गए।
हर धड़कन कागज के होंठो नहीं बोल पाती ...लेकिन अबोली भी नहीं रहती ...सफर-सरांय ...गूंजती रहती है.कानों -कान तमाम सारा आज भी हमारे-आपके आसपास धड़क रहा है.हमारे आपके साथ अगले पड़ाव तक भी जायेगा ...कागज से भी आगे की यात्रा है इसकी ...न भी दर्ज करें हम-आप ...पर ये हम सब की खबर ले ...हम सब की खबर बखूबी देगी ._शायद वैसे ही बिजुका लगें हम-आप भी जैसे हमारे दादे-परदादे किस्सों मैं .__पीढियों के अंतराल की एक छवि देखिये __स्वर्ग से पति-पत्नी की तीन पीढियां नजारा देख रहीं हैं...बदलते जमाने का _ देखो तो...कितना कुछ बदल गया...याद है ...आपने बरसों बाद हमारा चेहरा मुट्ठी भर जुगनुओं की चमक मैं देखा था ._दूसरी पीढी _बिजली की चमक मैं...मेंह बरसती रात थी .तीसरी पीढी _उस दिन.... !

तुमने कही, हमने सूनी ...सूनी सुनाई गुनी ...कहीं और कही_और कही बात चलती रही...बातों -बातों मैं _कहीं हकीकत बनी तो कहीं फ़साना ...कहीं फलसफा ...तो कहीं तराना ._दास्ताँ-डर-दास्ताँ जारी सफर मैं ...कौन कहाँ सो गया...सुनाते-सुनाते...कौन सो गया सुनते-सुनते इसका हिसाब-किताब बहुत मुश्किल है._कम-से-कम कागज पर तो और मुश्किल _जो जात-कुजात बरतता है,अर्थ ,अलंकार,अभिजात्य ...संस्कार निरखता है,उसका ओचित्य ...तर्क...व्यंजना और सार-तत्व परखता है_तमाम कसौटियों के बाद कागज़ बनता है__किसी कीजुबान !__वह भी तमाम बंदिशों ...वर्जनाओं ...और आग्रहों के साथ !!__कागज पर दर्ज कबीरी का ये ही तो रोना है__इकतारे की रुनझुन विलग कबीरा को गाना फकत __शब्दों को नचाना है__तभी तो छापे की थाप से अलग दुनिया अपनी ही मस्ती मैं नाचती है...दीवानी मीरा की तरह !

एक मुत्फारिक दुनिया है ...जमाने-से-जमाने के बीच पुल __तमाम सफर मैं हैं अपनी-अपनी यादों की पोटली लादे __जमाने भर का लोहा-लंगड़ ,अगड़म -बगड़म ,पोथी-पत्तर ,कथा-कबाड़,थ्योरी-थीसिस ,बहता-बहता संसार __कभी किसी कोने से ...तो कभी किसी कोने से ...शिनाख्त पाते हैं __यह तिकलमा...जो सुनेगा...गुनेगा...कहेगा ...उन सबको हाजिर...नाजिर मानकर ...जो कहते-कहते सो गए...जो सुनाने को बैठे हैं ...बोली-अबोली दस्तें ...! हम सब सफर मैं हैं __कल और आयेंगे मुझसे कहने वाले !!!
'मुतफर्रिक ' कालम के तहत छपने वाले टुकडे प्रिंट के रूप में आप __http://tillanr.blogspot.com/पढ़ सकतें हैं !

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